माननीय सर्वोच्च न्यायालय और एनजीटी के आदेशों की उड़ाई जा रही खुलेआम धज्जियां
जनपद देहरादून के विकासनगर तहसील क्षेत्र के ढालीपुर आसान कंजर्वेशन रिजर्व बेल्ट के 10 किलोमीटर की परिधि के दायरे में यमुना नदी में जमकर दिन-रात पोकलैंड और जेसीबी मशीनों को उतार कर खनन कार्य किया जा रहा है। बता दें की सरकार द्वारा नवंबर माह में 6 महीने के लिए यमुना नदी के चैनेलाइजेशन के नाम पर रिवर ट्रेनिंग का एक खनन पट्टा आवंटित किया है जबकि रिवर ट्रेनिंग का पट्टा बरसात के डेड से 3 महीने पहले आवंटित किया जाता है। सूत्र बताते हैं कि उक्त खनन पट्टा राज्य की नदियों से अवैध खनन को बंद करने के लिए आयी कंपनी को पूरे 5 साल के लिए आवंटित किया गया है। पहले बात तो वेटलैंड क्षेत्र की 10 किलोमीटर परिधि में किसी भी प्रकार का खनन कार्य प्रतिबंधित है यदि यमुना नदी में कोई निजी नाप भूमि में खनन पट्टा आवंटित भी होता है तो उसमें भी भारी-भारी मशीनों से खनन कार्य नहीं किया जा सकता जिसमें कि मैनुअल ही चुगान का कार्य किया जा सकता है। उक्त रिवर ट्रेनिंग के पटू संचालकों के पास ना तो कोई NBW की रिपोर्ट उपलब्ध है और ना ही एनजीटी से कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र और ना ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय ने अपने किसी आदेशों में कोई संशोधन वेटलैंड क्षेत्र में खनन कार्य के लिए किया है। पूर्व में भी जीएमवीएन को सरकार द्वारा खनन पट्टा आवंटित किया गया था जिस पर माननीय उच्च न्यायालय और एनजीटी ने स्वत संज्ञान लेते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी और सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई थी।
आपको बता दें कि नम भूमि क्षेत्र ( कंजरवेशन रिजर्व ) के संरक्षण के लिए दुनियां की सबसे बडी साइट रामसर साइट ने आसन रिजर्व कंजरवेशन वैट लैंड क्षेत्र को मान्यता दी हुई है।आसन बैराज में हर साल सर्दी के मौसम में पांच से दस हजार के करीब देश विदेश के पक्षी डेरा डालते हैं। करीब 45 प्रजातियों से अधिक विदेशी परिंदे आते हैं। जबकि देशी परिदों को जोडकर दो सौ अधिक प्रजातियों के परिंदे डेरा डालते हैं।आसन कंजरवेशन रिजर्व का 444.40 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी की वेटलैंड के 10 किलोमीटर के दायरे में वन्यजीव और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और जलवायु परिवर्तन राष्ट्रीय बोर्ड की स्थायी समिति की अनुमति के बगैर खनन पर रोक लगाने के आदेश पारित किए हैं।
बता दें कि इस आसन बैराज वेटलैंड के आसपास नियमों में बदलाव करके सरकार और माइनिंग विभाग द्वारा कई क्रशरों को लगाने की इजाजत तो दे दी गई वहीं अगर वेटलैंड नियमों को पूरी तरह से लागू कर दिया जाए तो यमुना किनारे लगे कई स्टोन क्रेशरों को भी हटाना पड़ सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर संबंधित विभागों के जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारी इतना सब कुछ चलने के बाद भी क्यों मौन धारण किए हुए हैं। क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय का किसी भी प्रकार का आदेश संबंधित विभागों के लिए उक्त कंपनी के आगे कोई मायने नहीं रखता और भारत का संविधान भी संबंधित विभागों में बैठे अधिकारीयों व कर्मचारीयों के लिए उनके नजरिए से चलता है।