उत्तराखंड के उच्च न्यायालय ने हरिद्वार में मांस के पूर्ण प्रतिबंध से जुड़े मामले से संबंधित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस दौरान राज्य की धामी सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि ‘लोकतंत्र का अर्थ केवल बहुसंख्यकों का शासन ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना होता है।’ कोर्ट ने सवाल किया है कि लोग क्या खाएंगे ये तय करना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में कब से आने लगा? हरिद्वार में जिस तरह के प्रतिबंध की बात की गई है, उससे यही सवाल खड़ा होता है कि क्या नागरिकों की पसंद अब राज्य तय करेगा?
आपको बता दें, हरिद्वार को मांस मुक्त शहर बनाने संबंधी मामले पर दाखिल दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी सभ्यता की महानता का पैमाना यही होता है कि वह कैसे अल्पसंख्यक आबादी के साथ बर्ताव करती है।
चीफ जस्टिस आरएस चौहान ने कहा, ‘मुद्दा यही है कि अपना भोजन चुनने का अधिकार नागरिक को है या फिर यह राज्य तय करेगा., अगर हम कहते हैं कि यह राज्य तय करेगा क्योंकि राज्य एक खास किस्म के मांस पर प्रतिबंध लगाने को मंज़ूरी दे चुका है, तो सवाल यह है कि क्या अन्य तरह के मांस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है?’
गौरतलब है कि कई दिनों से खबरें सामने आ रही थी कि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार राज्य के दो जिलों हरिद्वार और ऋषिकेश को पूरी तरह मांस मुक्त शहर बनाने की योजना पर काम कर रही है। इस साल मार्च के महीने में उत्तराखंड ने हरिद्वार के कसाईखानों को जारी किए गए अनापत्ति प्रमाण पत्र रद्द कर दिए थे।