विकासनगर-पिछले वर्ष शक्तिनहर के मरम्मत कार्यों पर 17 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, नहर के टूट चुके किनारों, नहर के बेस व अन्य तमाम तरह के जरूरी कार्यों को संपन्न कराया गया था। बावजूद इसके ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी की शक्ति नहर कि मेंटेनेंस और रिपेयर के लिए एक ही वर्ष में दोबारा क्लोजर लेने की जरूरत पड़ गई।
बताते चलें कि पिछले वर्ष मेंटेनेंस और रिपेयरिंग के नाम पर शक्ति नहर को एक महीने के लिए बंद किया गया था तब भी कहीं समाजसेवियों और स्थानीय मीडिया ने घटिया गुणवत्ता से कार्यों का कराया जाना और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। पानी सूखने भी नहीं पाया था कि पानी में ही मिट्टी युक्त आईबीएम और सीमेंट घोलकर डाल दिया गया था साइड वॉल पर भी नाम मात्र ही रिपेयरिंग का कार्य किया गया था और आनन-फानन में शक्ति नहर में पानी छोड़ दिया गया था। अब जब 1 साल भी नहीं बीत पाया और शक्ति नहर की साइड वॉल और बेड जगह-जगह क्षतिग्रस्त हो गये तो दोबारा 1 साल के भीतर ही विभाग को क्लोजर लेना पड़ा और जानकारों का कहना है कि फिर करोड़ों रुपए ठिकाने लगाने का खेल शुरू हो गया जिसमें देखा जा रहा है कि क्लोजर का समय पूरा होने में मात्र दो दिन बचे हैं और नहर के बेड पर साईड वाल का मलबा जगह-जगह देखने को मिल रहा है और गिनती के मजदूर लीपा पोती करते नजर आ रहे हैं। जबकि शक्ति नहर में होने वाली क्षति को दुरुस्त करने के लिए हर 5 साल में क्लोजर लिया जाता रहा है यह एक अनोखी प्रथा चल पड़ी है कि हर साल विद्युत उत्पादन को बाधित करके क्लोजर लिया जा रहा है और ठेकेदारों से मिली भगत कर करोड़ों रुपए ठिकाने लगाए जा रहे हैं ।
आपको बता दें कि ढकरानी में 33.75 मेगावाट व ढालीपुर में 51 मेगावाट की जलविद्युत परियोजनाओं से प्रतिदिन बिजली का उत्पादन होता है क्लोजर लेने के बाद यह जो बिजली उत्पादन में नुकसान हुआ है इसकी भरपाई कौन करेगा और बार-बार मेंटेनेंस और रिपेयरिंग के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाने की जवाब देही किसकी बनती है। आखिर उत्तराखंड जल विद्युत निगम किन ठेकेदारों की हाथ की कठपुतली बना हुआ है जो उनको लाभ पहुंचने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है।
शक्तिनहर की मरम्मत कार्य में पिछले साल लगे 17 करोड़ डूब गए पानी में, दोबारा क्लोजर लेकर कर की जा रही लीपापोती
