देहरादून, 18 अगस्त: चुनावी साल में उत्तराखंड में अवैध और मलिन बस्तियों को नियमित करने के लिए सरकार ने फिर से रेड-कारपेट बिछा दिया है। सोमवार को राज्य मंत्रीमंडल की बैठक में फैसला किया गया कि अगले तीन साल तक किसी बस्ती को तोड़ा नहीं जाएगा।
इस फैसले के बाद प्रदेश के 63 नगर निकायों की 582 मलिन बस्तियों के 7,71,585 निवासियों को राज्य सरकार ने वर्ष 2024 तक ‘अभयदान’ दे दिया है। इनमें 36 फीसद बस्तियां निकायों जबकि दस फीसद राज्य और केंद्र सरकार, रेलवे व वन विभाग की भूमि पर मौजूद हैं। वहीं, बाकी 44 फीसद बस्तियां निजी भूमि पर अतिक्रमण कर बनी हुई हैं।
हरित एवं सुंदर उत्तराखंड। शायद ही यह जुमला आने वाले दिनों में किसी जुबान पर सुनाई दे। वोटबैंक की राजनीति की खातिर सरकार ने अव्यवस्थित रूप से अतिक्रमण कर बसी बस्तियों के लिए जो रेड कारपेट बिछाया है, उसका सच तो यही है। गरीबों के लिए आवासीय योजनाएं लाने व उनके पुनर्वास की व्यवस्था के बजाय सरकार तो अवैध बस्तियों पर कानूनी वैधता की मुहर लगाने की तैयारी कर रही है। सरकारी भूमि व नालों पर कब्जा कर बनी अवैध बस्तियों को नियमित करने के लिए सरकार ने पहले ही कमेटी भी गठित कर दी थी। चूंकि, इस कमेटी की सिफारिश पर सरकार फिलहाल कोई निर्णय नहीं ले सकी, लिहाजा सरकार ने इस मामले को तीन साल आगे खिसकाने का कदम उठा लिया।
मलिन बस्तियों के विनियमितीकरण और मालिकाना हक दिलाने के लिए राजनेताओं की होड़ किसी से छुपी नहीं। वर्ष-2017 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार भी इस हसरत के साथ विदा हो गई व मौजूदा भाजपा सरकार भी उसके ही नक्शे-कदम पर चल रही है। चार वर्ष पहले भाजपा के सत्ता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी बस्तियों के विनियमितीकरण का फैसला लिया गया था, लेकिन तकनीकी अचडऩ में सरकार इसे आगे सरकाती रही। फिर अप्रैल में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी इसी दिशा में आगे बढ़ाया, लेकिन कुछ कर पाने से पहले ही उन्हें रुखसत कर दिया गया। नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उसी दिशा में कदम आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। उन्होंने तो एक या दो नहीं, पूरे तीन साल तक बस्तियों को तोड़ने पर रोक लगा दी।
राज्य बनने से पहले नगर पालिका रहते हुए दून में 75 मलिन बस्तियां चिह्नित की गई थीं। राज्य गठन के बाद दून नगर निगम के दायरे में आ गया। वर्ष 2002 में मलिन बस्तियों की संख्या 102 चिह्नित हुई और वर्ष 2008-09 में हुए सर्वे में यह आंकड़ा 129 तक जा पहुंचा। वर्तमान में अगर नजर दौड़ाएं तो यह आंकड़ा 150 तक जा पहुंचा है। यह केवल चिह्नित बस्तियों का रिकार्ड है, मगर हकीकत इससे कहीं आगे है।