देश में केंद्र सरकार के द्वारा कुछ विभागों का निजीकरण कर दिया गया है या किया जा रहा है जिसको लेकर देश के कई हिस्सों में तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं जिसमें एक धड़ा निजीकरण के विरोध में है वही दूसरा धड़ा निजीकरण के पक्ष में है। जो लोग निजीकरण का विरोध कर रहे हैं अगर उनसे पूछा जाए तो वह लोग सही से यह बता नहीं पा रहे हैं कि वह इस निजी करण का विरोध क्यों कर रहे हैं बस विरोध कर रहे हैं।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार चार रणनीतिक क्षेत्रों परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष एवं रक्षा, परिवहन एवं दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज, बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों के सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण को प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गैर-रणनीतिक सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण (Privatization) का जोरदार तरीके से समर्थन करते हुए कहा था कि व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है।
लेकिन जो लोग सरकार द्वारा किए जा रहे निजी करण के पक्ष में हैं उन लोगों का मानना है कि सरकारी विभागों में अच्छी तनख्वाह पाने वाले ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी खुद को सरकार का दामाद समझते हैं और जरूरतमंद आम जनता को किसी भी कार्य के लिए अपने निजी स्वार्थ के चलते अक्सर गुमराह करते हैं और उनका कार्य ना करने के बहाने बनाते हुए गोल-गोल घुमाते रहते हैं और कुछ लोगों का तो यह कहना है कि निजी करण होने से सेवाएं थोड़ी महंगी तो जरूर होंगी लेकिन लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और जो सेवाएं निजीकरण होने के चलते महंगी होंगी वह इतनी महंगी भी नहीं होंगी जितना कि लोग अपना कार्य कराने के लिए उन कुछ भ्रष्ट एवं स्वार्थी अधिकारियों व कर्मचारियों की जेबें भरते हैं चाहे वह कमीशन के रूप में हो या रिश्वत के रूप में जो उन तक उनके दलालों के माध्यम से पहुंचाई जाती है।
कुछ लोगों के द्वारा नाम ना छापने की बात कहते हुए यह भी बताया कि यदि वह किसी भी कार्य की अनुमति लेने के लिए किसी विभाग के दफ्तर में जाना पड़ जाए तो एक वैध कार्य के लिए भी विभाग से अनुमति लेना उनके लिए बहुत ही टेढ़ी खीर जैसा है जब तक वह फाइल के साथ में चढ़ावा नहीं चढ़ाते तब तक उनको जांच जांच जांच के नाम पर गोल गोल घुमाया जाता रहता है यदी चढ़ावा नहीं चढ़ाया गया तो वह फाइल कभी पास ही नहीं होती और अगर चढ़ावा चढ़ा दिया गया तो सारी जांच ओके हो जाती हैं कुछ विभागों में तो भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है जिसका इलाज सिर्फ और सिर्फ निजीकरण ही है।
बैंकों का निजीकरण
केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के फैसलों की जानकारी जब वित्त मंत्री प्रेस कांफ्रेंस में दे रही थीं, उस वक्त उनसे सवाल पूछा गया कि आखिर सरकार सरकारी बैंकों का निजीकरण क्यों कर रही है, इसके जवाब में वित्त मंत्री सीतामरण ने जवाब दिया कि देश में कुछ बैंक अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ ठीक-ठाक काम कर रहे हैं लेकिन कुछ बैंक ऐसे भी हैं, जो संकटग्रस्त हैं और ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने बताया कि हमें ऐसे बैंकों की जरूरत है जो उच्च स्तर के हों। बैंकों का मर्जर भी इसलिए किया जा रहा है ताकि बड़े बैंक निकलें और ग्राहकों की जरूरतों को पूरा कर सकें।
अब आप ही तय कीजिए कि सरकार द्वारा निजीकरण का यह कदम कितना उचित है और कितना अनुचित जहां तक हमारा मानना है कि सरकार द्वारा निजीकरण करना देश और जनता के हित में ही लिया गया फैसला होगा क्योंकि जनता के द्वारा दिया जाने वाला टैक्स का पैसा मोटी मोटी तनख्वाह में जाने से बचेगा और देश के हित में कई छोटे बड़े प्रोजेक्ट और जनता की लाभकारी योजनाओं में लग सकेगा गैर महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी सार्वजनिक संसाधनों की बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता में सर्वोपरि क्षेत्रों में लगा सकेगी जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा तथा सामाजिक और आवश्यक आधारभूत संरचना
निजीकरण से एक फायदा यह भी होगा कि बहुत सारे क्षेत्रों में जैसे दूरसंचार और पेट्रोलियम जैसे अनेक क्षेत्रों में सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार समाप्त हो जाने से अधिक विकल्पों और सस्ते तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और सेवाओं के चलते उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और जिन कार्यों के लिए जनता को दर-दर भटकना और गोल गोल घूमना पड़ता है और शिकायत करने पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है उससे भी लोगों को काफी राहत मिल सकेगी।
मुख्य संपादक- राजिक खान