जयप्रकाश रंजन नई दिल्ली। फरवरी-मार्च, 2022 में विधान सभा चुनाव के बाद जिस भी पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में बने यह तय है कि इन सरकारों को अपने राज्य की इकोनोमी को पटरी पर लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।पिछले चार-पांच वर्षो के दौरान इन राज्यों के बजट से जुड़े दस्तावेजों के अध्ययन व संकेतक बताते हैं कि बढ़ते कर्ज की देनदारियों को थामने के साथ ही आगामी सरकारों को राजस्व स्त्रोतों को बढ़ाना होगा और निवेश की गुणवत्ता में भारी सुधार लाना होगा।
महामारी ने बिगाड़ी आर्थिक सेहत
राजस्व की स्थिति बिगड़ने की वजह से दूसरे अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा पर कर्ज का बोझ अप्रत्याशित तौर पर बढ़ा है। जिस रफ्तार से इन राज्यों ने कर्ज लिया है उसका खामियाजा आगामी सरकारों को उठाना पड़ेगा क्योंकि इसकी अदायगी कुछ वर्षों बाद शुरू होगी।
कितने करोड़ कर्ज लिया
अगर उत्तर प्रदेश को देखा जाए तो वर्ष 2019-20 से वर्ष 2021-22 के दौरान (वर्ष 2021-22 का बजटीय आकलन आंकड़ा) इसने कुल 1,72,703 करोड़ रुपये का नया कर्ज लिया है जबकि इस दौरान सिर्फ 42,120 करोड़ रुपये के पुराने कर्ज को चुकाया है। पंजाब ने इस अवधि में 71,430 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और 27,363 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाया। उत्तराखंड ने 12,500 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और 2,441 करोड़ रुपये चुकाये।
सात वर्षों के भीतर चुकाना होगी किश्त
आरबीआइ का आकलन यह भी कहता है कि मार्च, 2021 की स्थिति के मुताबिक उत्तर प्रदेश को कुल बकाये कर्ज का तकरीबन 48 फीसद राशि का भुगतान अगले सात वर्षों के भीतर करना होगा जबकि उत्तराखंड सरकार को इस अवधि में बकाये कर्ज का 57.8 फीसद हिस्से की अदायगी करनी होगी।
भारी भरकम अदायगी
पंजाब को इन वर्षों में 43 फीसद, गोवा को 58 फीसद और मणिपुर को 43 फीसद कर्ज अदा करना होगा। वैसे दूसरे राज्यों की भी कमोबेश यही स्थिति है और दूसरे शब्दों में कहें तो इन राज्यों की सरकारों के लिए राजस्व संग्रह में खासी बढ़ोतरी किये बगैर कर्ज बोझ उतारना आसान नहीं होगा।
सामाजिक विकास की अनदेखी
आरबीआइ की इस रिपोर्ट में इन राज्यों की मौजूदा सरकारों की तरफ से सामाजिक विकास को कितनी तवज्जो दी गई है इसका भी पता चलता है। उत्तर प्रदेश के सालाना बजट में शिक्षा क्षेत्र में होने वाले व्यय की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षो में 14.8 फीसद से घटकर 12.5 फीसद हो गई है। इस दौरान यहां स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर होने वाले खर्चे की हिस्सेदारी 5.3 फीसद से बढ़कर 5.9 फीसद होने का अनुमान लगाया गया है।