सुप्रीम कोर्ट वोटर्स लिस्ट के आंकड़ों को आधार से जोड़ने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने के लिए सोमवार को राजी हो गया. जज एस के कौल और जज अभय एस ओका की बेंच ने पूर्व मेजर जनरल एस जी वोम्बाटकेरे की तरफ से दायर याचिका को ऐसे ही एक अन्य लंबित मुकदमे से जोड़ दिया.
बेंच ने कहा, ”याचिका करने वाले ने 2019 के आधार से जुड़े फैसले पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा है कि अगर कुछ लाभ मांगे जाते हैं तो आधार अनिवार्य हो सकता है लेकिन अधिकारों से दूर रखने के लिए नहीं और मतदान का अधिकार ऐसे अधिकारों में सर्वोच्च है.”
मतदान का अधिकार सबसे पवित्र
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”उन्होंने दो अन्य याचिकाएं भी दायर की हैं इसलिए इसे भी जोड़ने जरूरी है. इस याचिका को इस मामले से संबद्ध करें.” याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि मतदान का अधिकार सबसे पवित्र अधिकारों में से एक है और अगर किसी के पास आधार नहीं है तो उसे इससे वंचित नहीं रखा जाना चाहिए.
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केंद्र ने पहले निर्वाचन पंजीकरण नियमों में संशोधन करते हुए मतदाताओं के नाम एक साथ कई मतदाता सूचियों में होने से रोकने के लिए मतदाता सूची को आधार से जोड़ने की मंजूरी दी थी.
मतदाताओं को बाध्य नहीं किया जाएगा
हालांकि, इसी साल चुनाव आयोग ने साफ कर दिया था कि मतदाता पहचान पत्र को आधार से लिंक करने के लिए मतदाताओं को बाध्य नहीं किया जाएगा. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्यों में बूथ लेवल आफिसर मतदान केंद्रों पर तथा घर-घर जाकर मतदाताओं से स्वैच्छिक रूप से आधार नंबर फार्म 6बी एकत्रित करेंगे.
क्या वोटर आईडी को आधार से लिंक करना जरूरी
चुनाव आयोग का दावा है कि इससे इलेक्टोरल रोल में डुप्लीकेट से बचा जा सकेगा और चुनावों में धांधली रोकने में भी मदद मिलेगी. केंद्र सरकार चुनाव कानून में संशोधन को लेकर बिल भी लेकर आई थी. यह बिल संसद से पास भी हो चुका है और अब कानून बन चुका है. इसके बाद वोटर आईडी और आधार कार्ड को लिंक करने का रास्ता साफ हो गया है.