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पछवादून के सभी विभागों में मान्य है यू जे वी एन एल के अधिशासी अभियंता का आदेश

विकासनगर-यूजेवीएनएल के अधिशासी अभियंता ने एक आदेश पारित किया जिसमें कुछ डंपरों के नंबर लिख कर लिस्ट जारी की गई कि 25 मई तक उक्त वाहनों को हिमाचल राज्य से जोड़ने वाले प्रतिबंधित पुल से आवाजाही पर किसी प्रकार की रोक ना लगाई जाए जिस आदेश के चलते डाकपत्थर बैराज पुल और हिमाचल राज्य से जोड़ने वाले पुल से उक्त सभी वाहन हिमाचल राज्य के क्रेशर प्लांट से राज्य सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई खनिज सामग्री धुली बजरी का परिवहन करते रहे जिसको रोकने टोकने वाला कोई नहीं है यहां तक की किसी भी संबंधित विभाग जैसे जंगलात विभाग पुलिस विभाग स्टेट जीएसटी किसी ने भी उक्त प्रतिबंधित खनन सामग्री से भरे डंपरों को रोकने की जहमत नहीं समझी अधिशासी अभियंता के उस आदेश के आगे सभी संबंधित जिम्मेदार विभाग नतमस्तक खड़े नजर आए।

और अधिशासी अभियंता के द्वारा लिस्ट में जारी किए गए डंपर दिन रात हिमाचल राज्य से उत्तराखंड राज्य में उक्त प्रतिबंधित पुलों से प्रतिबंधित खनन सामग्री का परिवहन करते रहे वह भी बिना किसी प्रकार का सरकारी शुल्क व टैक्स दिए जबकि नियम यह है कि अन्य राज्य से लाई जाने वाली खनिज सामग्री पर वन विभाग अपना शुल्क वसूलता है और स्टेट जीएसटी भी देनी पड़ती है जबकि यहां तो एक आदेश के चलते किसी प्रकार का कोई सरकारी टैक्स ना सरकारी शुल्क दिया जा रहा था ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी जो अधिशासी अभियंता ने अपने अधिकारों से आगे बढ़कर दूसरे राज्य से बेरोकटोक खनिज सामग्री लाने वाले वाहनों के लिए एक लेटर जारी कर दिया।

यदि कोई विभागीय कार्य के लिए किसी प्रकार की खनिज सामग्री का लाया जाना जरूरी था तो भी जिला अधिकारी देहरादून से अनुमति लेनी आवश्यक होती है जोकि कुछ नियम और बाध्यताओं के अनुसार दी जाती है जिसमें वन विभाग का शुल्क भी जमा किया जाता है और स्टेट जीएसटी भी भरनी होती है नियम तो और भी काफी कुछ हैं लेकिन शायद अधिशासी अभियंता ने अपने आप को सर्वोपरि समझते हुए सभी कायदे कानून ताक पर रख दिए।

और कमाल की बात तो यह है कि इतने दिन से विभागीय काम के नाम पर जारी लिस्ट के वाहन दिन रात अवैध रूप से हिमाचल प्रदेश से प्रतिबंधित खनन सामग्री का परिवहन करते रहे और जंगलात विभाग, पुलिस विभाग, जीएसटी विभाग, तहसील प्रशासन सब के सब अधिशासी अभियंता के उस आदेश के आगे नतमस्तक रहे किसी ने भी जांच पड़ताल करने की जहमत नहीं उठाई या यूं कहें सब मिलीभगत के चलते हुआ है।अब दूसरा सवाल यह उठता है कि प्रदेश को पहुंचाई गई इस हानि का भुगतान करेगा कौन।

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