उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल पर दुनिया की नजरें टिकी हैं, जहां 12 नवंबर से 41 मजदूरों की सांसें अटकी हुई हैं. इस टनल से मजदूरों को जिंदा निकालने की जद्दोजहद चल रही है. टनल बनाने का मकसद यमुनोत्रीधाम की दूरी कम करना है, लेकिन इस हादसे ने टनल से जुड़े कई बड़े प्रोजेक्ट्स के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
बता दें कि ऑल वेदर रोड की सिलक्यारा टनल की बात करें, तो साढ़े 4 किलोमीटर की इस टनल से यमुनोत्री धाम की दूरी 26 किमी कम होगी. इसी तरह ऋषिकेश-कर्णप्रयागा रेल लाइन की लंबाई 125 किमी है, जिसमें 105 किमी रेल लाइन टनल के अंदर से गुजरेगी.17 अलग अलग टनल से होकर रेल ऋषिकेश से कर्णप्रयागा पहुंचेगी, इस प्रोजेक्ट पर अभी काम चल रहा है.
ऐसा ही प्लान मसूरी में टनल बनाने का है, जाम से छुटकारा दिलाने के लिए बनने वाली, ये टनल 4 किलोमीटर की होगी, जिसमें 2 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे. वहीं, देहरादून और टिहरी के बीच भी टनल बनाने का प्लान है, इस प्रोजेक्ट में 4 से 5 टनल बनेंगी, जिनकी लंबाई करीब 20 किमी होगी, तो देहरादून और टिहरी की दूरी 100 किमी से घटकर करीब 40 किलोमीटर रह जाएगी.
इन बड़ी योजनाओं पर आगे बढ़ना तो सही है, लेकिन सवाल ये कि क्या उत्तराखंड की पहाड़ियां टनल जैसे प्रोजेक्ट्स के लिए कितनी सुरक्षित हैं? रिटायर फॉरेस्ट चीफ और जियोलॉजी एक्सपर्ट श्रीकांत चंदोला की मानें, तो उत्तराखंड के नए और कमजोर पहाड़ों में ऐसे प्रोजेक्ट नहीं होने चाहिए, और बहुत जरूरी हो, तो फिर यूरोप की तरह हाई क्वालिटी काम होना चाहिए.
उत्तराखंड में बड़े टनल से जुड़े प्रोजेक्ट सफर को आसान बनाने के लिए हैं, लेकिन सिलक्यारा के हादसे ने सरकार और शासन के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. रिटायर चीफ सेक्रेटरी इंदु कुमार पांडे के अनुसार, एक घटना के बाद बड़े टनल प्रोजेक्ट बंद कर देना ऑप्शन नहीं है. जरूरी है कि कोई भी काम कमज़ोर पहाड़ों में शुरू करने से पहले एक्सपर्ट की राय की जाए, और बड़े प्रोजेक्ट में टनल बनाने का काम बड़ी प्लानिंग के साथ सोच समझकर होना चाहिए.
सिलक्यारा टनल को बनाने में लापरवाही हुई, ये साबित हो चुका है. तमाम कोशिशों के बावजूद अबतक कुछ हाथ नहीं लगा है, ऐसे में उत्तराखंड के कमज़ोर पहाड़ों में टनल प्रोजेक्ट्स बनाने से पहले, जरूरी है कि सिलक्यारा टनल की घटना से सबक सीखा जाए और आगे के लिए भविष्य की राह को सुगम किया जाए.