देहरादून। मुहर्रम का चांद दिखने के बाद शिया समाज में गम का माहौल है। कर्बला के शहीदों का गम मनाने के लिए पुरुषों ने रंग-बिरंगे लिबास उतारकर काला लिबास पहन लिया है तो महिलाओं ने जेवर और चूड़ियां उतार दीं हैं। घरों और मस्जिदों, इमामबाड़ा में गम मजलिसों का दौर जारी है, जिसमें कर्बला की लड़ाई और हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद किया जा रहा है।
मुहर्रम माह में इन दिनों घरों और मस्जिदों में मजलिसों का दौर चल रहा है। मुहर्रम के 10वें दिन 20 अगस्त को यौम-एक आशुरा मनाया जाएगा। बीते 10 अगस्त को चांद दिखने के साथ ही मुहर्रम महीना और इस्लामिक कैलेंडर हिजरी 1443 का आगाज हो चुका है।
शिया समुदाय इस महीने को गम के रूप में मनाता है।
इन दिनों घरों और मस्जिदों पर मजलिसें चल रही हैं। उलेमा द्वारा कर्बला में जंग के वाक्या के बारे में बताया जा रहा है। समाजसेवी हसन जैदी बताते हैं कि महीने के शुरुआती 10 दिनों तक यह कार्यक्रम चलता रहेगा। 10वें दिन मातमी जुलूस निकाला जाता है। इस बार प्रशासन की अनुमति मिलती है तो तभी जूलूस निकाला जाएगा। वहीं ताजियों को दफन किया जाएगा।
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना मुहर्रम
शहर मुफ्ती सलीम अहमद कासमी ने कहा कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक साल का पहला महीना मुहर्रम का होता है। इस महीने को इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक रमजान के बाद दूसरा सबसे मुकद्दस महीना माना जाता है। हदीसों में इस महीने की बड़ी फजीलत (उत्कृष्टता) बताई गई है। साथ ही इसी महीने के दसवें दिन, पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत हुसैन की शहादत भी हुई थी। 622 ईसवी में इस्लामिक नए साल यानी हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई। इस कैलेंडर को हिजरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि पैगंबर हजरत मोहम्मद ने इसी साल अपने साथियों के साथ मक्का को छोड़कर मदीना के लिए हिजरत (पलायन) किया था। इस घटना को 1443 वर्ष हो गए हैं।