सीधी भर्ती के 18 पीसीएस अधिकारी अपनी वरिष्ठता की जंग जीत गए हैं। इसके साथ ही सीधी भर्ती के अधिकारियों के आइएएस बनने की राह भी खुल गई है।
देहरादून। उत्तराखंड में लंबे समय से प्रोमोशन की जंग लड़ रहे 2002 के 18 अफसरो के आईएएस बनने का रास्ता साफ हो गया है। मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के कुछ अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही पहले बैच के पीसीएस अधिकारियों को राहत देते हुए शासन से उन्हें एक माह के भीतर आईएएस बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि पहले वरिष्ठता सूची जारी करें और उसके बाद डीपीसी कर आईएएस बनाएं। बताया जा रहा है कि इन पीसीएस अफसरों को प्रमोशन होने पर आईएएस में 2015 बैच आवंटित किया जाएगा। इस लिहाज से ये सभी अफसर जिलाधिकारी के रूप में तैनाती पाने के अधिकृत होंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तर प्रदेश से अलग होकर वर्ष 2000 में जब उत्तराखंड का गठन हुआ, तब उत्तर प्रदेश से काफी कम पीसीएस अधिकारी उत्तराखंड आए। अधिकारियों की कमी को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने तहसीलदार और कार्यवाहक तहसीलदारों को तदर्थ पदोन्नति देकर उपजिलाधिकारी (एसडीएम) बना दिया था। यह सिलसिला वर्ष 2003 से 2005 तक चला। इसी दौरान वर्ष 2005 में सीधी भर्ती से 20 पीसीएस अधिकारियों का चयन हुआ। विवाद की स्थिति तब पैदा हुई, जब उत्तराखंड शासन ने अधिकारियों की पदोन्नति के लिए वर्ष 2010 में एक सीधी भर्ती व एक तदर्थ पदोन्नति का फॉर्मूला तैयार कर आपत्तियां मांगी। पदोन्नत पीसीएस अधिकारियों ने इस पर एतराज जताते हुए पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति जस्टिस एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने आज मंगलवार को इसका निस्तारण किया। खंडपीठ ने सरकार को आदेश दिया है कि पहले इनकी वरिष्ठता सूची जारी की जाए और एक माह के अंदर डीपीसी कराकर पात्र लोगों को आईएएस में पदोन्नति दी जाए। प्रमोट होने वाले पीसीएस अफसर ललित रयाल, आनंद श्रीवास्तव, हरीश कांडपाल, गिरधारी रावत, मेहरबान सिंह बिष्ट, आलोक पांडे, बंशीधर तिवारी, रुचि रयाल, झरना कमठान, दीप्ति सिंह, रवनीत चीमा, प्रकाश चंद, निधि यादव, प्रशांत, आशीष भटगई, विनोद गिरि गोस्वामी, संजय और नवनीत पांडे शामिल है।