देहरादून। उत्तराखंड का मौजूदा भू-कानून रद होगा या इसमें संशोधन किया जाएगा, इसे लेकर नई सरकार पर निगाहें टिकी हैं। भू-कानून के परीक्षण को गठित समिति भी अब नई सरकार के रुख का इंतजार कर रही है।
मौजूदा भू-कानून में दी गई रियायतों का विरोध
उत्तराखंड में मौजूदा भू-कानून में दी गई रियायतों का विरोध किया जा रहा है। साथ में हिमाचल की तर्ज पर यह कानून बनाने की पुरजोर पैरवी की जा रही है। भाजपा सरकार ने यह मांग जोर पकड़ने के बाद पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। समिति भूमि कानून को लेकर विभिन्न पहलुओं से अध्ययन करने के साथ ही इसकी वजह से होने वाली परेशानी के बारे में जिलों से मिलने वाली रिपोर्ट का अध्ययन करेगी।
समिति को अभी तक मिले 160 से अधिक सुझाव
भू-कानून के अध्ययन में नया आयाम भी जुड़ चुका है। जनसांख्यिकीय बदलाव को ध्यान में रखकर भी इसका अध्ययन किया जा रहा है। समिति को अभी तक 160 से अधिक सुझाव मिल चुके हैं। अब जिलों से जिलाधिकारियों की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। समिति चुनाव आचार संहिता लागू होने तक सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप नहीं पाई थी। इसलिए अब समिति और उसकी रिपोर्ट का भविष्य भी नई सरकार तय करेगी।
जन संगठनों एवं बुद्धिजीवियों से सुझाव ले चुकी समिति
भाजपा की सत्ता में दोबारा वापसी होने की सूरत में समिति अपनी अधूरी रिपोर्ट को पूरा कर नई सरकार को सौंपेगी। समिति जन संगठनों एवं बुद्धिजीवियों से सुझाव ले चुकी है। हालांकि जन सुनवाई के लिए समिति और वक्त चाहती थी। अब सत्ता परिवर्तन यानी कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में समिति के भविष्य पर अनिश्चितता मंडरा सकती है। दरअसल कांग्रेस पहले ही यह घोषणा कर चुकी है कि सरकार बनने पर भू-कानून को निरस्त किया जाएगा। फिलहाल इस मामले में नजरें नई सरकार पर टिक गई हैं।