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चैत्र नवरात्रि के की पूर्व संध्या पर गौशाला में सवामणी का आयोजन

रुड़की: पितरों की अमावस्या यानी शुक्ल पक्ष की चैत्र प्रतिपदा की पूर्व संध्या पर चाव मंडी स्थित गौशाला में गौ माता का पूजन करके उनको सवामणी का भोग लगाया गया। लखनऊ से आए यजमान मनोज सिंघल ने संस्था के पदाधिकारियों के साथ मिलकर गौ माता की पूजा की। इस मौके पर राज्यपाल असम और नागालैंड के मीडिया सलाहकार अतुल सिंघल, गौशाला सभा के पदाधिकारी श्री प्रमोद गोयल, वीरेंद्र गर्ग, हरी मोहन कपूर, राम गोपाल कंसल, राज कुमार उपाध्याय, मुनेंद्र जी भी मौजूद थे। श्री सिंघल दिल्ली में चल रहे पंचगव्य आधारित आयुर्वेदिक कैंसर अस्पताल के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। अतुल सिंघल ने कहा कि देसी गाय के गौमूत्र और गौमय जैसे उत्पादों में भी चमत्कारिक शक्तियां हैं। श्री सिंघल ने बताया कि गोमूत्र और गोबर से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज संभव है। जबकि श्री वीरेंद्र गर्ग ने गौशाला सभा की भावी योजनाओं की जानकारी अतिथियों के सामने रखी।
साक्षात्कार

बीते दिनों राज्यपाल असम के मीडिया सलाहकार एवं वरिष्ठ पत्रकार अतुल सिंघल का हरिद्वार/ रुड़की आना हुआ। अतुल सिंघल पत्रकारिता के पेशे के साथ-साथ समाजिक क्षेत्र में भी खासा योगदान दे रहे हैं। दिल्ली में वह पिछले करीब एक दशक से कैंसर रोगियो के लिए कार्य कर रहे हैं और एक धर्मार्थ आयुर्वेदिक कैंसर अस्पताल के संस्थापक अध्यक्ष हैं। इस अस्पताल में कैंसर रोगियों का इलाज पंचगव्य एवं आयुर्वेद के मिश्रण से किया जाता है। पेश है अतुल सिंघल से बातचीत के संपादित अंश:

सवाल- आपके व्दारा संचालित कैंसर अस्पताल में किस तरह से मरीजों का इलाज किया जाता है।
उत्तर- हमारा ट्रस्ट उत्तर भारत का पहला ऐसा चेरिटेबल अस्पताल संचालित कर रहा है, जहां कैंसर रोगियों का इलाज पंचगव्य एवं आयुर्वेदिक दवाओं से किया जाता है। इस अस्पताल में रोगियों से नाममात्र का खर्चा लिया जाता है।

सवाल- यह पंचगव्य क्या होता है और कैंसर जैसे जानलेवा रोग में कितना कारगर है?
उत्तर- देखिए देसी गाय के दूध, घी, दही, मूत्र और गोमय के निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहते हैं। पंचगव्य का वर्णन शास्त्रों में भी है। आयुर्वेद में इसे अमृत के समान और कई बीमारियों का नाश करने वाला कहा गया है। आधुनिक विज्ञान भी आजकल इसपर निरंतर शोध किया जा रहा है। कैंसर के इलाज में इसके परिणाम बहुत सकारात्मक हैं।

सवाल- कैंसर के उपचार के लिए बड़े बड़े अंग्रेजी अस्पताल खुले हैं। ऐसे में मरीज इस आयुर्वेदिक अस्पताल पर कितना और क्यों विश्वास करें?

उत्तर: देखिए हमारा यह मानना है की एलोपैथी रोग को दबा देता है। जबकि आयुर्वेद उसका जड़ से नाश करता है। एलोपैथी में कैंसर का इलाज ना केवल बहुत महंगा है, बल्कि पीड़ादायक भी है। वहीं आयुर्वेद में नाम मात्र के खर्चे से इसका कारगर इलाज किया जा सकता है। हमारी दवाओ के सार्थक प्रभाव को देश के अनेक कैंसर विशेषज्ञों और उपचार ले चुके मरीजों ने स्वयं स्वीकार किया है।

सवाल- आपके यहां कौन सी स्टेज के कैंसर का इलाज होता है और इसमें कितने दिन लगते हैं?
उत्तर: आयुर्वेद में कैंसर को अरबुद या कर्करोग कहा गया है। सामान्य भाषा में इसे आप रसौली, गांठ इत्यादि भी बोल सकते हैं। आयुर्वेद स्टेज को नहीं मानता। अलबत्ता इतना अवश्य है की रोगी चल फिर सकता हो, थोड़ा बहुत खा पी रहा हो और उसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो। यानी मरीज पूरी तरह बिस्तर पर नही हो। हम अपने यहां मरीज को भर्ती करके उन्हे दवाई का सेवन करना और दवाई बनाना सिखाते हैं। यह ग्यारह दिन का लर्निंग पीरियड होता है। उसके बाद मरीज को लगातार विश्वास से इस पद्धति का अनुसरण करना पड़ता है। समय रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है।

सवाल- अब तक आपके यहां कितने मरीज इलाज करा चुके हैं और उनकी सफलता का प्रतिशत कितना है।
उत्तर- यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि रोगी आयुर्वेद से कैंसर का इलाज तभी करवाने की दिशा में आगे बढ़ते जब वह हर तरफ से निऱाश हो जाते हैं और दुनिया भर में अपना पैसा खर्च चुके होते हैं। यह कहना उचित होगा कि हमारे पास कैंसर रोगी अपनी अंतिम स्टेज में पहुंचते है। फिर भी हम उनका इलाज करते हैं और कैंसर रोगियों को संतुलित जीवन शैली जीने के लिए प्रेरित करते हैं। पिछले सात वर्षों में कई हजार मरीज हम तक पहुंचे हैं और बहुत हद तक हम कैंसर रोगियों के जीवन चक्र को बढ़ाने में सफल रहे है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे चिकित्साल का कोई प्रचार प्रसार नहीं है। यू ट्यूब देखकर अथवा हमारे यहां से ठीक हो चुके मरीजों के रेफरेंस से लोग हमारे पास पहुंचते हैं। देश के हर राज्य से हमारे यहां कैंसर के रोगी इलाज के लिए आते हैं। जबकि अमेरिका जैसे उन्नत देशों से भी मरीजों ने हमारे यहां आकर स्वास्थ्य लाभ लिया है।

सवाल- दिल्ली में आपका अस्पताल कहां है और भविष्य की क्या योजना है?
उत्तर-हमारा अस्पताल बाहरी दिल्ली के घेवरा गांव में स्थित है। जहां फिलहाल 20 रोगियों के इलाज की व्यवस्था है। हम इसे 100 बेड का करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हमारे अस्पताल के साथ देश के जाने-माने आयुर्वेदाचार्य एवं वैद्य जुड़े हैं।
हमारा ट्रस्ट निरंतर इस प्रयास में है कि अपने इस अस्पताल को हम बड़े स्तर पर लेकर जाए ताकि कैंसर जैसे रोग से हम लोगों को जागरुक कर सकें। हमारा प्रयास है कि देश की सर्वश्रेष्ठ इलाज
पध्दति आयुर्वेद एवं पंचगव्य के बारे में देश विदेश में प्रसार-प्रचार हो ताकि पंचगव्य की ताकत एवं प्रभाव को दुनिया स्वीकार कर सकें।

पंचगव्य के लिए भी हमारे चिकित्साल के पास स्वयं की गऊशाला है। एवं आयुर्वेदिक दवाओं जैसे तुलसी, गिलोई, एलोविरा एवं जौ इत्यादि का उत्पादन भी हमारे फॉर्म में स्वयं किया जाता है इन्हीं सब उत्पादनों में बहुत कीमती आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों को मिलाकर रोगियों के लिए दवाई बनाई जाती है। हमारा प्रयास है कि पंचगव्य आधारित कैंसर का इलाज सरकार देश के सभी राज्यों में शुरू करे तो बहुत हद तक कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को हम उसकी शुरुआत में ही खत्म कर सकते हैं। पंचगव्य हमारी प्राचीन इलाज प्रणाली है जिसका उल्लेख आयुर्वेद में भी मिलता है।

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