हरिद्वार: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पूरे हरिद्वार जिले को ‘वध-मुक्त क्षेत्र’ घोषित करने वाली राज्य सरकार की अधिसूचना पर गुरुवार को रोक लगा दी। कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद जिले के मंगलौर नगरपालिका के एक बूचड़खाने में 10 जुलाई को ईद-उल-अजहा के मौके पर जानवरों की बलि दिए जाने की अनुमति दी।
चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि जिले में बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी केवल कानूनी रूप से चल रहे बूचड़खाने में किया जाना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने नगरपालिका से कहा कि कोर्ट के निर्देश का प्रचार-प्रसार किया जाए।
अदालत ने सरकारी आदेश पर सवाल उठाने वाले याचिकाकर्ता को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि जिले में कहीं और कोई कुर्बानी नहीं दी जाए।
दरअसल पिछले साल 3 मार्च को भाजपा सरकार ने हरिद्वार जिले में शहरी स्थानीय निकायों (दो नगर निगमों, दो नगर पालिका परिषदों और पांच नगर पंचायतों) को ‘बूचड़खाने मुक्त क्षेत्र’ घोषित किया था। इसके लिए बूचड़खानों को संचालित करने के लिए जारी की गई मंजूरी को भी रद्द कर दिया था।
कुंभ मेले से पहले नगर विकास विभाग का नोटिफिकेशन आया था। क्षेत्र के भाजपा विधायकों ने पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को एक पत्र लिखकर मांग की थी कि ‘हरिद्वार जैसे धार्मिक शहर’ में बूचड़खानों की अनुमति नहीं दी जाए।
हरिद्वार के फैसल हुसैन ने दी थी चुनौती
हरिद्वार के रहने वाले फैसल हुसैन ने राज्य सरकार के आदेश को यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि जानवरों की कुर्बानी इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है और ईद अल-अजहा के लिए मंगलौर के बूचड़खाने में जानवरों के वध की अनुमति दी जानी चाहिए। इस बूचड़खाने का निर्माण पिछले साल किया गया था लेकिन जिले में पशु वध पर पूर्ण प्रतिबंध के कारण वह काम नहीं कर सका।
हुसैन के वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने अदालत को पिछले साल के ईद अल-अजहा मनाए जाने की एक तस्वीर दिखाई, जिसमें सभी प्रतिबंधों के बावजूद मंगलौर में खुली सड़कों पर बड़े पैमाने पर जानवरों का वध किया गया था। गुप्ता ने तर्क दिया कि कानूनी रूप से चलने वाले बूचड़खाने को चालू किए बिना वध पर प्रतिबंध लगाने से समस्या हल नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि नगरपालिका की 87.45 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। यह क्षेत्र हरिद्वार शहर से लगभग 45 किमी दूर है और अगर मंगलौर के एक बूचड़खाने में जानवरों के वध की अनुमति दी जाती है, तो हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी।
कार्तिकेय हरि गुप्ता के अनुसार 2011 में हाई कोर्ट ने तीन साल में एक बूचड़खाने के निर्माण का आदेश दिया था। हालांकि ऐसा नहीं हुआ और 2016 में ही राज्य सरकार ने मंगलौर नगर पालिका को पीपीपी मोड में बूचड़खाने बनाने की अनुमति दी थी। इसका फरवरी 2021 में पूरा हुआ था। पिछले साल मार्च में हालांकि, सरकार ने पूरे हरिद्वार जिले को वध-मुक्त घोषित कर दिया था।
इसके बाद राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी गई थी और कहा गया था कि मंगलौर हरिद्वार शहर से 45 किमी दूर है और इस प्रकार ये हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को प्रभावित नहीं करेगा।