यूँ तो एक दिन में पांच वक़्त की नमाज पढ़ी जाती है। जिसमें रमजान में तरावीह नमाज (tarabi ki namaz)का विशेष महत्व माना गया है। तरावीह की नमाज़ (Taraweeh ki Namaz) ईशा की नमाज के बाद पढ़ी जाती है, जिसमें 20 रकात पढ़ी जाती है। हर दो रकात के बाद सलाम फेरा जाता है। 10 सलाम में 20 रकात होती हैं। वहीं हर 4 रकात के बाद दुआ (tarabi ki dua) पढ़ी जाती है। जिसमें सभी नमाजी देश और समाज की सलामती और भाईचारे के लिए दुआ मांगते हैं। कुछ लोग सबीना में जाकर पांच रोज की तरावीह (tarabi ki namaz) पढ़ते हैं। तो चलिए जानते हैं रमजान में तरावीह की नियत (Taraweeh ki Niyat) और तरावीह की दुआ (taravi ki dua) पढ़ने का तरीका और इसके सम्बंधित पूरी जानकारी।
तरावीह क्या है – Taraweeh ki Namaz Kya Hai
रमजान का पवित्र महीना अपने पापों का प्रायश्चित करने का और अपनी मनोकामना पूरी करने का एक अवसर है। मनोकामना पूरी करने का एक तरीका तरावीह माना जाता है। तरावीह एक अरबी शब्द है जिसका मतलब आराम और तेहेरना होता है। यह तरावीह की नमाज (tarabi ki namaz), पांचवी नमाज़ (ईशा) के बाद पढ़ी जाती है जिसमे 20 रकात होती है। हर चार रकात के बाद लोग थोड़ा ठहरते है। यह नमाज़ महिला और पुरुष दोनों पर फ़र्ज़ (जरूरी) है।
तरावीह की नियत – Taraweeh ki Niyat
तरावीह नमाज (tarabi ki namaz) को पढ़ने में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। जिसे रमजान के हर दिन पढ़ना जरूरी माना गया है। तरावीह कम से कम 27 दिन पढ़ना चाहिए तभी बरकत मिलती है। तरावीह की नमाज (tarabi ki namaz) से पहले तरावीह की नियत (Taraweeh ki Niyat) के बारे में जान लेना जरूरी है।
पुरुषों के लिए तरावीह की नियत का तरीका
नियत की मैंने दो रकात नमाज़ सुन्नत तरावीह, अल्लाह तआला के वास्ते, वक्त इशा का, पीछे इस इमाम के मुहं मेरा कअबा शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर कह कर हाथ बाँध लेना है फिर सना पढ़ेंगे !
महिलाओं के लिए तरावीह की नियत का तरीका
नियत की मैंने दो रकात नमाज़ सुन्नत तरावीह, अल्लाह तआला के वास्ते, वक्त इशा का, मुहं मेरा कअबा शरीफ़ की तरफ़, अल्लाहु अकबर हाथ बाँध लेना है।
तरावीह की नमाज का तरीका – Tarabi ki Namaz Padhne ka Tarika
नियत करने के बाद आप हाथ बाँध ले और सना पढ़ें! सना के अल्फाज़ इस तरह है –सुबहाना कल्ला हुम्मा व बिहम्दिका व तबारा कस्मुका व त’आला जद्दुका वला इलाहा गैरुक इसके बाद :अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम. बिस्मिल्लाही र्रहमानिर रहीम पढ़े !
तरावीह यदि आप मस्जिद में इमाम के पीछे पढ़ते हो तो बस 4 रकात के बाद तरावीह की दुआ (taravi ki dua) पढ़नी चाहिए, लेकिन किसी कारण आप मस्जिद में नमाज ना पढ़ पाए तो फिर सूरह फातिहा के बाद आप अलम-त-र से से सूरह नास तक पढ़ कर तरावीह की नमाज़ (tarabi ki namaz) अदा कर सकते है। अलम-त-र से से सूरह नास तक १० रकात होती है। आप इसे 2 बार पढ़ले ताकि आपकी 20 रकात पूरी होजाए। अगर अलम-त-र की सूरह याद नहीं है तो आप चारो कुल पढ़कर भी नमाज़ अदा कर सकते है !जब दो -दो रकअत करके चार रकअत मुकम्मल तब आपको तरावीह की दुआ (taravi ki dua) पढ़नी चाहिए ! इस तरह 20 रकअत तरावीह की नमाज़ (Taraweeh ki Namaz) में 5 मर्तबा तरावीह की तस्बीह (Taraweeh ki Tasbih) पढ़ी जायेगी ! जिसे हम तरावीह की दुआ (Taraweeh ki Dua) कहते है।
हिंदी में तरावीह की दुआ – Taraweeh ki Dua in Hindi
सुबहान ज़िल मुल्कि वल मलकूत, सुब्हान ज़िल इज्ज़ति वल अज़मति वल हय्बति वल कुदरति वल किबरियाई वल जबरूत, सुबहानल मलिकिल हैय्यिल लज़ी ला यनामु वला यमुतू सुब्बुहून कुददुसुन रब्बुना व रब्बुल मलाइकति वर रूह, अल्लाहुम्मा अजिरना मिनन नारि या मुजीरू या मुजीरू या मुजीर
औरतो की तरावीह की नमाज़ का तरीका – Ladies Taraweeh Padhne ka Tarika
हाथ बाँध लेने के बाद सना पढ़ना है। सना के अल्फाज़ इस तरह है –सुबहाना कल्ला हुम्मा व बिहम्दिका व तबारा कस्मुका व त’आला जद्दुका वला इलाहा गैरुका
इसके बाद :अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम. बिस्मिल्लाही र्रहमानिर रहीम पढ़े!बाकी नमाज़ वैसी ही पढ़ना है जैसे और नमाज़ पढ़ी जाती है ! नमाज़ में सूरह फातिहा के बाद जो सूरह पढ़ी जायेगी वो निचे दी गयी है ! या जो भी सूरह आपको याद् हो आप वो भी पढ़ सकती हो ! फिर 2×2 की नियत से जब चार रकअत नमाज़ अदा हो जाए ! तब आपको तरावीह की तस्बीह पढ़नी चाहिए ! इस तरह 20 रकअत तरावीह की नमाज़ (tarabi ki namaz) में 5 मर्तबा तरावीह की तस्बीह पढ़ी जायेगी ! जिसे हम तरावीह की दुआ (taravi ki dua) भी कहते है चार रकात के बाद बैठ कर थोड़ी देर आराम किया जाता है
तरावीह की दुआ – Taraweeh ki Dua
माह-ए-रमजान में तरावीह की दुआ (Taravi ki Dua in Hindi) के बहुत मायने होते हैं। तरावीह में हर चार रकात के बाद एक दुआ (tarabi ki dua) पढ़ी जाती है। इस दुआ को जरूर पढ़ना चाहिए। जिस तरह रमजान में रोजा रखने की दुआ पढ़ना ज़रूरी है, उसी तरह तरावीह की दुआ (taraweeh ki dua) अपना अलग महत्व रखती है। रमजान के आखिरी रोजे पर इसे जरूर पढ़ना चाहिए। यह महीना इतना खास होता हैं कि सब पर अल्लाह की रहमत बरसती है। इस महीने मुसलमान अपनी चाहतों पर नकेल कस सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं। यह महीना सब्र का महीना भी माना जाता है। इस बात का ज़िक्र इस्लाम की धार्मिक किताब कुरआन में भी किया गया है।