नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जोशीमठ भू-धंसाव को लेकर पीसी तिवारी की जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सरकार को सख्त निर्देश दिए. कोर्ट ने कहा इस मामले की जांच के लिए सरकार इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट सदस्यों की कमेटी गठित करेगी. जिसमे पीयूष रौतेला और एमपीएस बिष्ठ भी होंगे. यह कमेटी दो माह के भीतर अपनी रिपोर्ट शील्ड बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी.
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यहां निर्माण पर लगी रोक के आदेश को प्रभावी रूप से लागू करने को कहा है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और एनटीपीसी की तरफ से कहा गया कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीर है. यहां पर सभी निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं. प्रभावितों की हर संभव मदद की जा रही है. भू-धंसाव को लेकर सरकार वाडिया इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट की मदद ले रही है.
दरअसल, वकील स्निग्धा की तरफ से यह तर्क दिया गया की वर्ष 1976 में ही मिश्र कमेटी की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि जोशीमठ शहर भूस्खलन के क्षेत्र में बना हुआ शहर है और इसीलिए प्राकृतिक रूप से संवेदनशील है. इसके उपरांत 2010 में पुनः विशेषज्ञों द्वारा यह आगाह किया गया था कि जोशीमठ क्षेत्र में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं का संचालन नही होना चाहिए. परंतु उनकी किसी ने नहीं सुनी तथा वर्तमान में प्रभाव सबके सामने है.
सरकार की तरफ से और जल विद्युत परियोजना कंपनियों की ओर से कोर्ट में कहा गया कि उनके द्वारा वर्तमान में निर्माण या विस्फोट नही लिया जा रहा है. उनकी इस बात का नोट बनाते हुए उच्च न्यायालय ने पुनः यह स्पष्ट कर दिशा निर्देश दिए की वहां कोई निर्माण न हो और साथ ही साथ एक स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति अपनी रिपोर्ट को एक बंद लिफाफे में कोर्ट के समक्ष पेश करेंगे।
पीसी तिवारी ने अपने प्रार्थना पत्र में कहा था कि जोशीमठ में लगातार भू-धंसाव हो रहा है, घरों और भवनों में दरारें आ रही हैं. जिससे यहां के लोग दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं. प्रदेश सरकार की ओर से जनता की समस्या को नजरअंदाज किया जा रहा है. उनके पुनर्वास के लिए रणनीति तैयार नहीं की गयी है. किसी भी समय जोशीमठ का यह इलाका तबाह हो सकता है. प्रशासन ने करीब ऐसे 600 भवनों को चिन्हित किया है, जिनमे दरारें आयी है. ये दरारें दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया कि 1976 में मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को दी थी, जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ शहर मिट्टी और रेत कंकड़ से बना है. यहां कोई मजबूत चट्टान नहीं है, जिसकी वजह से कभी भी भू-धंसाव हो सकता है. निर्माण कार्य करने से पहले इसकी जांच की जानी आवश्यक है. जोशीमठ के लोगों को जंगल पर निर्भर नहीं होना चाहिए. उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों की व्यवस्था भी करनी चाहिए.
25 नवंबर 2010 को पीयूष रौतेला और एमपीएस बिष्ठ ने एक शोध जारी कर कहा था कि सेलंग के पास एनटीपीसी टनल का निर्माण कर रही है, जो अति संवेदनशील क्षेत्र है. टनल बनाते वक्त एनटीपीसी की टीबीएम फंस गयी, जिसकी वजह से पानी का मार्ग अवरुद्ध हो गया और 700 से 800 सौ लीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी ऊपर बहने लगा. यह पानी इतना अधिक बह रहा है कि इससे प्रतिदिन 2 से 3 लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है. पानी की सतह पर बहने के कारण निचली भूमि खाली हो जाएगी और भू-धंसाव होगा. इसलिए इस क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य बिना सर्वे के न किए जाए.
मामले के अनुसार अल्मोड़ा निवासी उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के सदस्य पीसी तिवारी ने 2021 में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार के पास आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी है. सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो आपदा आने से पहले उसकी सूचना दें. वहीं, उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं.
उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं. जिस वजह से बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है. हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है. कर्मचारियों को केवल सुरक्षा के नाम पर हेलमेट दिए गए हैं. कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई और ना ही कर्मचारियों के पास कोई उपकरण मौजूद है.