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हाईकोर्ट और एनजीटी के आदेशों की उड़ाई जा रही धज्जियां,एनएच के नाम पर आसन नदी में चलाई जा रही पोकलैंड जेसीबी मशीन

उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान आदेश पारित कर उत्तराखंड में मशीनों से नदियों के खनन पर रोक लगाई थी।सभी जिलाधिकारियों को ये आदेश जारी कर अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा गया था। बावजूद इसके राजधानी देहरादून से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर सिंघनीवाला शेरपुर में पडने वाली आसन नदी से दिन के 24 घंटे लगातार जेसीबी मशीन और पोकलैंड मशीन के द्वारा सभी आदेशों की धज्जियां उड़ाते हुए एनएच निर्माण कार्य के नाम पर अवैध खनन का खुला खेल चल रहा है पोकलेन मशीन और जेसीबी मशीन के द्वारा आसन नदी में 8 फुट तक की खुदाई कर अवैध खनन किया जा रहा है और बिना तोले ही आसन नदी से एनएच रोड के बेड पर आरबीएम डाला जा रहा है जिसमें ना तो कोई राजस्व विभाग का तोल कांटा लगा है जिससे यह तय हो सके कि एनएचके लिए कितनी मात्रा में चुगान किया गया है और जिस जगह से पोकलेन के द्वारा आसन नदी को खोदा जा रहा है उसकी भी कोई पैमाइश नहीं की गई है और ना ही वहां मॉनिटरिंग के लिए कोई राजस्व विभाग का कर्मचारी मौजूद मिला जब इस बाबत एनएच निर्माण कार्य कर रही है एमकेसी इन्फ्राट्रक्चर कंपनी के अधिकारियों से जानकारी लेनी चाही कि किन मानकों के तहत कंपनी को आसन नदी से खनन सामग्री मॉनसून सत्र में उठाने की अनुमति मिली हुई है और किन-किन और कितने वाहनों का कंपनी के द्वारा खनन सामग्री उठाने के लिए पंजीकरण कराया गया है तो कंपनी के अधिकारियों से जवाब देते नहीं बना।

वही जब इस बाबत से संबंधित विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो उनका सिर्फ यही कहना था कि शासन से अनुमति है और हाईकमान का आदेश है जिसकी किसी प्रकार की कॉपी देखने के लिए प्रस्तुत नहीं कर सके वही एनएच विभाग के प्रोजेक्ट मैनेजर पंकज मौर्या का कहना है कि उनके विभाग के द्वारा कंपनी को सड़क निर्माण का कार्य आवंटन किया गया है जिसमें कंपनी को समय से कार्य पूरा करके देना है वह भी राज्य सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए लेकिन उसमें कंपनी किसी भी तरह का कोई रूल ब्रेक करती है या माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करती है यानी किसी भी तरह की इलीगल एक्टिविटी की कंपनी स्वयं जिम्मेदार होगी कंपनी के इलीगल कार्यों में विभाग का कोई लेना देना नहीं है। यदि कंपनी के द्वारा इलीगल रूप से माइनिंग की जा रही है तो उसके लिए राज्य सरकार अपने नियम अनुसार कार्यवाही कर सकता है।

दूसरी ओर जिला अधिकारी सोनिका सिंह का कहना है कि इस तरह का मामला उनके संज्ञान में नहीं है इसकी लिखित शिकायत आने पर जांच कर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। कॉफी जानकारी जुटाने के बाद एक अनुमति पत्र हाथ लगा जिसमें साफ तौर पर मॉनसून सत्र के 3 महीने छोड़कर खनन कार्य की अनुमति दी गई थी और 3 महीने छोड़कर कंपनी को सरकार की रायल्टी जमा करने का आदेश दिया गया था।

अब यहां सवाल यह उठता है कि

१) क्या एमकेसी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी पर हाई कोर्ट और एनजीटी का आदेश लागू नहीं होता है जो भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक और कार्यदाई संस्था पर लागू होता है?

२) किन मानकों के तहत एमकेसी इन्फ्राट्रक्चर कंपनी आसन नदी से पोकलेन और जेसीबी की मदद से मॉनसून सत्र में खनिज सामग्री उठाकर सड़क निर्माण में इस्तेमाल कर रही है।

३) किस आधार पर हाईकोर्ट और एनजीटी की रोक के बावजूद दिन के 24 घंटे आसन नदी से पोकलेन मशीन और जेसीबी की मदद से 8 फीट तक खुदाई कर खनन कार्य किया जा रहा है।

४) किन वाहनों और मशीनों का एमकेसी कंपनी के द्वारा पंजीकरण कराया गया है जो नदी से खनन कार्य करेंगे और उन वाहनों की मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी किसकी है।

५) कौन सा रास्ता एमकेसी कंपनी के वाहनों को नदी से खनन सामग्री लाने के लिए पास किया गया है?

६) क्यों आखिर संबंधित विभाग और प्रशासन एनएच के नाम पर एमकेसी कंपनी के द्वारा किए जा रहे अवैध खनन और नदी में हाईकोर्ट और एनजीटी की रोक के बावजूद उतारी गई जेसीबी मशीन और पोकलैंड मशीन पर कार्यवाही नहीं कर रहा है?

७) आखिर सरकार को किस-किस शहर और संरक्षण के तहत रोजाना लाखों करोड़ों रुपए राजस्व की हानि पहुंचाई जा रही है?

अब देखना यह होगा कि मामला संज्ञान में आने पर संबंधित विभाग और प्रशासन किस तरह की कार्यवाही करता है और करता भी है या नहीं और अगर नहीं करता है तो हाईकोर्ट और एनजीटी को ही स्वता इस पूरे प्रकरण का संज्ञान लेना चाहिए।

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